Bharatiya Sakshya Act, 2023 Section 132 in Hindi
- (1) कोई भी अधिवक्ता अपने कक्षीकार की अभिव्यक्त सम्मति के सिवाय ऐसी किसी संसूचना को प्रकट करने के लिए, जो उसके ऐसे अधिवक्ता की हैसियत में सेवा के अनुक्रम में और उसके प्रयोजनार्थ उसके कक्षीकार द्वारा, या की ओर से उसे दी गई हो या किसी दस्तावेज की, जिससे वह अपनी वृत्तिक सेवा के अनुक्रम में और उसके प्रयोजनार्थ परिचित हो गया है, अन्र्तवस्तु या दशा कथित करने को या किसी सलाह को, जो ऐसी सेवा के अनुक्रम में और उसके प्रयोजनार्थ उसने अपने कक्षीकार को दी है, प्रकट करने के लिए किसी भी समय अनुज्ञात नहीं किया जाएगा :
परन्तु इस धारा की कोई भी बात निम्नलिखित बात को प्रकटीकरण से संरक्षण न देगी,-
(क) किसी भी अवैध प्रयोजन को अग्रसर करने में दी गई कोई भी ऐसी संसूचना ;
(ख) ऐसा कोई भी तथ्य जो किसी अधिवक्ता ने अपनी ऐसी हैसियत में सेवा के अनुक्रम में संप्रेषित किया हो, और जिससे दर्शित हो कि उसके सेवा के प्रारम्भ के पश्चात् कोई अपराध या कपट किया गया है।
(2) यह तत्वहीन है कि उपधारा (1) के परंतुक में निर्दिष्ट ऐसे अधिवक्ता का ध्यान ऐसे तथ्य के प्रति उसके कक्षीकार के द्वारा या की ओर से आकर्षित किया गया था या नहीं ।
स्पष्टीकरण इस धारा में कथित बाध्यता वृत्तिक सेवा के अवसित हो जाने के उपरान्त भी बनी रहती है।
दृष्टांत
(क) कक्षीकार क, अधिवक्ता ख से कहता है, “मैंने कूटरचना की है और मैं चाहता हूं कि आप मेरी प्रतिरक्षा करें”। यह संसूचना प्रकटन से संरक्षित है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति की प्रतिरक्षा आपराधिक प्रयोजन नहीं है, जिसका दोषी होना ज्ञात हो।
(ख) कक्षीकार क, अधिवक्ता ख से कहता है, “मैं सम्पत्ति पर कब्जा कूटरचित विलेख के उपयोग द्वारा अभिप्राप्त करना चाहता हूं और इस आधार पर वाद लाने की मैं आपसे प्रार्थना करता हूं। यह संसूचना आपराधिक प्रयोजन के अग्रसर करने में की गई होने से प्रकटन से संरक्षित नहीं है।
(ग) क पर गबन का आरोप लगाए जाने पर वह अपनी प्रतिरक्षा करने के लिए अधिवक्ता ख को प्रतिधारित करता है। कार्यवाहियों के अनुक्रम में ख देखता है कि क की लेखाबही में यह प्रविष्टि की गई है कि क द्वारा उतनी रकम देनी है, जितनी के बारे में अभिकथित है कि उसका गबन किया गया है, जो प्रविष्टि उसकी वृत्तिक सेवा के आरम्भ के समय उस बही में नहीं थी। यह ख द्वारा अपनी सेवा के अनुक्रम में सम्प्रेक्षित ऐसा तथ्य होने से, जिससे दर्शित होता है कि कपट उस कार्यवाही के प्रारम्भ होने के पश्चात् किया गया है, प्रकटन से संरक्षित नहीं है।
(3) इस धारा के उपबंध अधिवक्ताओं के निर्वचनकर्ताओं और लिपिकों या कर्मचारियों को लागू होंगे ।
Bharatiya Sakshya Act, 2023 Section 132 in English
- (1) No advocate, shall at any time be permitted, unless with his client’s express consent, to disclose any communication made to him in the course and for the purpose of his service as such advocate, by or on behalf of his client, or to state the contents or condition of any document with which he has become acquainted in the course and for the purpose of his professional service, or to disclose any advice given by him to his client in the course and for the purpose of such service:
Provided that nothing in this section shall protect from disclosure of—
(a) any such communication made in furtherance of any illegal purpose;
(b) any fact observed by any advocate, in the course of his service as such, showing that any crime or fraud has been committed since the commencement of his service.
(2) It is immaterial whether the attention of such advocate referred to in the proviso to sub-section (1), was or was not directed to such fact by or on behalf of his client.
Explanation.—The obligation stated in this section continues after the professional service has ceased.
Illustrations.
(a) A, a client, says to B, an advocate—”I have committed forgery, and I wish you to defend me”. As the defence of a man known to be guilty is not a criminal purpose, this communication is protected from disclosure.
(b) A, a client, says to B, an advocate—”I wish to obtain possession of property by the use of a forged deed on which I request you to sue”. This communication, being made in furtherance of a criminal purpose, is not protected from disclosure.
(c) A, being charged with embezzlement, retains B, an advocate, to defend him. In the course of the proceedings, B observes that an entry has been made in A’s account book, charging A with the sum said to have been embezzled, which entry was not in the book at the commencement of his professional service. This being a fact observed by B in the course of his service, showing that a fraud has been committed since the commencement of the proceedings, it is not protected from disclosure.
(3) The provisions of this section shall apply to interpreters, and the clerks or employees of advocates.