भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 | BSA Section 27 in Hindi

Bharatiya Sakshya Act, 2023 Section 27 in Hindi

27. वह साक्ष्य, जो किसी साक्षी ने किसी न्यायिक कार्यवाही में, या विधि द्वारा उसे लेने के लिए प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष दिया है, उन तथ्यों की सत्यता को, जो उस साक्ष्य में कथित हैं, किसी पश्चातवर्ती न्यायिक कार्यवाही में या उसी न्यायिक कार्यवाही के आगामी प्रक्रम में साबित करने के प्रयोजन के लिए तब सुसंगत है, जब कि वह साक्षी मर गया है या मिल नहीं सकता है या वह साक्ष्य देने के लिए असमर्थ है या प्रतिपक्षी द्वारा उसे पहुंच के बाहर कर दिया गया है या यदि उसकी उपस्थिति इतने विलम्ब या व्यय के बिना, जितना कि मामले की परिस्थितियों में न्यायालय अयुक्तियुक्त समझता है, अभिप्राप्त नहीं की जा सकती: 

परन्तु वह तब जब कि वह कार्यवाही उन्हीं पक्षकारों या उनके हित प्रतिनिधियों के बीच में थी, प्रथम कार्यवाही में प्रतिपक्षी को प्रतिपरीक्षा का अधिकार और अवसर था, और विवाद्य प्रश्न प्रथम कार्यवाही में सारतः वही थे जो दिद्वतीय कार्यवाही में हैं। 

स्पष्टीकरण-दाण्डिक विचारण या जांच इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत अभियोजक और अभियुक्त के बीच कार्यवाही समझी जाएगी । 

Bharatiya Sakshya Act, 2023 Section 27 in English

  1. Evidence given by a witness in a judicial proceeding, or before any person authorised by law to take it, is relevant for the purpose of proving, in a subsequent judicial proceeding, or in a later stage of the same judicial proceeding, the truth of the facts which it states, when the witness is dead or cannot be found, or is incapable of giving evidence, or is kept out of the way by the adverse party, or if his presence cannot be obtained without an amount of delay or expense which, under the circumstances of the case, the Court considers unreasonable:
    Provided that the proceeding was between the same parties or their representatives in interest; that the adverse party in the first proceeding had the right and opportunity to cross-examine and the questions in issue were substantially the same in the first as in the second proceeding.
    Explanation.—A criminal trial or inquiry shall be deemed to be a proceeding between the prosecutor and the accused within the meaning of this section.

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