Bharatiya Sakshya Act, 2023 Section 3 in Hindi
3. किसी वाद या कार्यवाही में हर विवाद्यक तथ्य के और ऐसे अन्य तथ्यों के, जिन्हें एतस्मिन् पश्चात् सुसंगत घोषित किया गया है, अस्तित्व या अनस्तित्व का साक्ष्य दिया जा सकेगा और किन्हीं अन्यों का नहीं ।
स्पष्टीकरण – यह धारा किसी व्यक्ति को ऐसे तथ्य का साक्ष्य देने के लिए योग्य नहीं बनाएगी, जिससे सिविल प्रक्रिया से सम्बन्धित किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के किसी उपबन्ध द्वारा वह साबित करने से निर्हकित कर दिया गया है।
दृष्टांत
(क) ख की मृत्यु कारित करने के आशय से उसे लाठी मारकर उसकी हत्या कारित करने के लिए क का विचारण किया जाता है।
क के विचारण में निम्नलिखित तथ्य विवाद्य है :-
क का ख को लाठी से मारना;
क का ऐसी मार द्वारा ख की मृत्यु कारित करना;
ख की मृत्यु कारित करने का क का आशय ।
(ख) एक वादकर्ता अपने साथ वह बन्धपत्र, जिस पर वह निर्भर करता है, मामले की पहली सुनवाई पर अपने साथ नहीं लाता और पेश करने के लिए तैयार नहीं रखता । यह धारा उसे इस योग्य नहीं बनाती कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 द्वारा विहित शर्तों के अनुकूल वह उस कार्यवाही के उत्तरवर्ती प्रक्रम में उस बन्धपत्र को पेश कर सके या उसकी अन्तर्वस्तु को साबित कर सके ।
Bharatiya Sakshya Act, 2023 Section 3 in English
- Evidence may be given in any suit or proceeding of the existence or non-existence of every fact in issue and of such other facts as are hereinafter declared to be relevant, and of no others.
Explanation.—This section shall not enable any person to give evidence of a fact
which he is disentitled to prove by any provision of the law for the time being in force relating to civil procedure.
Illustrations.
(a) A is tried for the murder of B by beating him with a club with the intention of
causing his death.
At A’s trial the following facts are in issue:—
A’s beating B with the club;
A’s causing B’s death by such beating;
A’s intention to cause B’s death.
(b) A suitor does not bring with him, and have in readiness for production at the first
hearing of the case, a bond on which he relies. This section does not enable him to produce the bond or prove its contents at a subsequent stage of the proceedings, otherwise than in accordance with the conditions prescribed by the Code of Civil Procedure, 1908.