Bharatiya Sakshya Act, 2023 Section 2 in Hindi
2. (1) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) ‘न्यायालय के अन्तर्गत सभी न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट तथा मध्यस्थों के सिवाय साक्ष्य लेने के लिए वैध रूप से प्राधिकृत सभी व्यक्ति आते हैं;
(ख) ‘निश्चायक सबूत से अभिप्रेत है कि जब इस अधिनियम द्वारा एक तथ्य को किसी अन्य तथ्य का निश्चायक सबूत घोषित किया जाता है. वहां न्यायालय उस एक तथ्य के साबित हो जाने पर उस अन्य को साबित हुआ मानेगा और उसे नासाबित करने के प्रयोजन के लिए साक्ष्य दिए जाने की अनुजा नहीं देगा:
(ग) तथ्य के संबंध में, ‘नासाबित से अभिप्रेत है कि जब न्यायालय अपने समक्ष विषयों पर विचार करने के पश्चात् या तो यह विश्वास करे कि उसका अस्तित्व नहीं है, या उसके अनस्तित्व को इतना अधिसम्भाव्य समझे कि उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियों में किसी प्रज्ञावान व्यक्ति को इस अनुमान पर कार्य करना चाहिए कि उस तथ्य का अस्तित्व नहीं है।
(घ) ‘दस्तावेज’ से ऐसा कोई विषय अभिप्रेत है जिसको किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकी या चिह्नों के साधन द्वारा या उनमें से एक से अधिक साधनों द्वारा अभिव्यक्त या वर्णित या अन्यथा अभिलेखबद्ध किया गया है जो उस विषय के अभिलेखन के प्रयोजन से उपयोग किए जाने को आशयित हो या जिसका उपयोग किया जा सके और इसके अंतर्गत इलैक्ट्रॉनिक और डिजिटल अभिलेख भी हैं;
(i) लेख दस्तावेज है।
(ii) मुद्रित, शिलामुद्रित या फोटोचित्रत शब्द दस्तावेज हैं।
(iii) मानचित्र या रेखांक दस्तावेज है।
(iv) धातुपट्ट या शिला पर उत्कीर्ण लेख दस्तावेज है।
(v) उपहासांकन दस्तावेज है।
(vi) ई-मेल, सर्वर लॉग, कंप्यूटर, लैपटॉप या स्मार्ट फोन, मैसेज, वेबसाइट, अवस्थिति साक्य में इलैक्ट्रानिकी अभिलेख और डिजिटल युक्तियों में भंडार किए गए वॉयस मेल मैसेज दस्तावेज हैं।
(3) “साक्ष्य” से अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत आते हैं
(1) सभी कथन, जिसके अंतर्गत इलैक्ट्रानिकी रूप से दिए गए कथन सम्मिलित हैं. जिसे न्यायालय जांचाधीन तथ्य के विषर्यों के सम्बन्ध में अपने समक्ष साक्षियों द्वारा किए जाने की अनुजा देता है या अपेक्षा करता है और ऐसे कथन मौखिक साक्ष्य कहलाते हैं।
(ii) न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश किए गए सभी दस्तावेज, जिनके अंतर्गत इलैक्ट्रानिक या डिजिटल अभिलेख भी हैं और ऐसे दस्तावेज दस्तावेजी साक्ष्य कहलाते हैं।
(च) तथ्य’ से अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत आती हैं
(1) ऐसी कोई वस्तु, वस्तुओं की अवस्था या वस्तुओं का सम्बन्ध, जो इन्द्रियों दवारा बोधगम्य हो:
(i) कोई मानसिक दशा, जिसका भान किसी व्यक्ति को हो ।
(i) यह कि अमुक स्थान में अमुक क्रम से अमुक पदार्थ व्यवस्थित है, एक तथ्य है।
(ii) यह कि किसी व्यक्ति ने कुछ सुना या देखा, एक तथ्य है।
स्पष्टीकरण-जब कभी, कोई न्यायालय विवाद्यक तथ्य को सिविल प्रक्रिया से सम्बन्धित किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के उपबन्धों के अधीन अभिलिखित करता है, तब ऐसे विवाद्यक के उत्तर में जिस तथ्य का प्राख्यान या प्रत्याख्यान किया जाना है, वह विवाद्यक तथ्य है।
ख की हत्या का क अभियुक्त है। उसके विचारण में निम्नलिखित तथ्य विवाद्य हो सकते हैं-
(1) यह कि क ने ख की मृत्यु कारित की।
(ii) यह कि क का आशय ख की मृत्यु कारित करने का था ।
(iii) यह कि क को ख से गम्भीर और अचानक प्रकोपन मिला था ।
(iv) यह कि ख की मृत्यु कारित करते समय क चित्त-विकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति जानने में असमर्थ था;
(ज) उपधारणा कर सकेगा- जहां कहीं इस अधिनियम द्वारा यह उपबन्धित है कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारणा कर सकेगा, वहां न्यायालय या तो ऐसे तथ्य को साबित हुआ मान सकेगा, यदि और जब तक वह नासाबित नहीं किया जाता है, या उनके सबूत की मांग कर सकेगा :
(झ) “साबित नहीं हुआ कोई तथ्य साबित नहीं हुआ कहा जाता है, जब वह न तो साबित किया गया हो और न नासाबित :
(ञ) “साबित” कोई तथ्य साबित हुआ कहा जाता है, जब न्यायालय अपने समक्ष के विषयों पर विचार करने के पश्चात् या तो यह विश्वास करे कि उस तथ्य का अस्तित्व है या उसके अस्तित्व को इतना अधिसम्भाव्य समझे कि उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियों में किसी प्रज्ञावान व्यक्ति को इस अनुमान पर कार्य करना चाहिए कि उस तथ्य का अस्तित्व है;
(ट) “सुसंगत- एक तथ्य दूसरे तथ्य से सुसंगत कहा जाता है जब कि तथ्यों की सुसंगति से सम्बन्धित इस अधिनियम के उपबन्धों में निर्दिष्ट प्रकारों में से
किसी भी प्रकार से वह तथ्य उस दूसरे तथ्य से संसक्त हो।
(ठ) “उपधारणा करेगा जहां कहीं इस अधिनियम द्वारा यह निर्दिष्ट है कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारण करेगा, वहां न्यायालय ऐसे तथ्य को साबित मानेगा यदि और जब तक वह नासाबित नहीं किया जाता है।
(2) इसमें प्रयुक्त शब्द और पद, जो इस अधिनियम में परिभाषित नहीं हैं किंतु सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 में परिभाषित हैं, का वही अर्थ होगा, जो उनका उक्त अधिनियम और संहिता में है:
परन्तु इस अधिनियम में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 या भारतीय न्याय संहिता, 2023 के प्रतिनिर्देश का अर्थान्वयन क्रमशः भारतीय नागरिक सुरक्षा (दूसरी) संहिता, 2023 या भारतीय न्याय (दूसरी) संहिता, 2023 से लिया जाएगा ।
Bharatiya Sakshya Act, 2023 Section 2 in English
- (1) In this Adhiniyam, unless the context otherwise requires,—
(a) “Court” includes all Judges and Magistrates, and all persons, except
arbitrators, legally authorised to take evidence;
(b) “conclusive proof” means when one fact is declared by this Adhiniyam to
be conclusive proof of another, the Court shall, on proof of the one fact, regard the other as proved, and shall not allow evidence to be given for the purpose of disproving it;
(c) “disproved” in relation to a fact, means when, after considering the matters
before it, the Court either believes that it does not exist, or considers its non-existence so probable that a prudent man ought, under the circumstances of the particular case, to act upon the supposition that it does not exist;
(d) “document” means any matter expressed or described or otherwise recorded
upon any substance by means of letters, figures or marks or any other means or by more than one of those means, intended to be used, or which may be used, for the purpose of recording that matter and includes electronic and digital records.
Illustrations.
(i) A writing is a document.
(ii) Words printed, lithographed or photographed are documents.
(iii) A map or plan is a document.
(iv) An inscription on a metal plate or stone is a document.
(v) A caricature is a document.
(vi) An electronic record on emails, server logs, documents on computers, laptop
or smartphone, messages, websites, locational evidence and voice mail messages stored on digital devices are documents;
(e) “evidence” means and includes—
(i) all statements including statements given electronically which the
Court permits or requires to be made before it by witnesses in relation to matters of fact under inquiry and such statements are called oral evidence;
(ii) all documents including electronic or digital records produced for the inspection of the Court and such documents are called documentary evidence;
(f) “fact” means and includes—
(i) any thing, state of things, or relation of things, capable of being perceived by the senses;
(ii) any mental condition of which any person is conscious.
Illustrations.
(i) That there are certain objects arranged in a certain order in a certain place, is
a fact.
(ii) That a person heard or saw something, is a fact.
(iii) That a person said certain words, is a fact.
(iv) That a person holds a certain opinion, has a certain intention, acts in good faith, or fraudulently, or uses a particular word in a particular sense, or is or was at a specified time conscious of a particular sensation, is a fact;
(g) “facts in issue” means and includes any fact from which, either by itself or in connection with other facts, the existence, non-existence, nature or extent of any right, liability or disability, asserted or denied in any suit or proceeding, necessarily follows.
Explanation.—Whenever, under the provisions of the law for the time being in force relating to civil procedure, any Court records an issue of fact, the fact to be asserted or denied in the answer to such issue is a fact in issue.
Illustrations.
A is accused of the murder of B. At his trial, the following facts may be in issue:—
(i) That A caused B’s death.
(ii) That A intended to cause B’s death.
(iii) That A had received grave and sudden provocation from B.
(iv) That A, at the time of doing the act which caused B’s death, was, by reason
of unsoundness of mind, incapable of knowing its nature;
(h) “may presume”.—Whenever it is provided by this Adhiniyam that the Court may presume a fact, it may either regard such fact as proved, unless and until it is disproved or may call for proof of it;
(i) “not proved”.—A fact is said to be not proved when it is neither proved nor disproved;
(j) “proved”.—A fact is said to be proved when, after considering the matters before it, the Court either believes it to exist, or considers its existence so probable that a prudent man ought, under the circumstances of the particular case, to act upon the supposition that it exists;
(k) “relevant”.—A fact is said to be relevant to another when it is connected with the other in any of the ways referred to in the provisions of this Adhiniyam relating to the relevancy of facts;
(l) “shall presume”.—Whenever it is directed by this Adhiniyam that the Court shall presume a fact, it shall regard such fact as proved, unless and until it is disproved.
(2) Words and expressions used herein and not defined but defined in the Information Technology Act, 2000, the Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 and the Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 shall have the same meanings as assigned to them in the said Act and Sanhitas.